RAJASTHANI VETERANS

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Sunday 13 November 2016

क्या मीडीया अपने स्वार्थो की पूर्ति के लिए किसी को भी नायक बता देता है ?



          क्या मीडीया अपने स्वार्थो की पूर्ति के लिए किसी को भी नायक बता देता है ? क्या कोई दो दिन छुट्टी मे काम करने से नायक हो जाता है ? क्या दो दिन छुट्टी मे जो लाइन मे खड़े है वो खलनायक हो गये, जो मीडीया उनको लाइन मे खड़े होने की नसियत दे रहे है !


            आज एक समाचार पत्र के मुख्य पृष्ट पर किसी एक बेंक के कर्मियो के नाम के साथ फोटो छपी और उनको महिमा मंडित करने की कोशिश की गयी है और आम जनता को लाइन मे खड़े होने की नसियत दी गई है जो दुखदपूर्ण एवं घाव पर नमक लगाने के जैसा है !

Dainik Bhasker - 13 November 2016
समाचार पत्र का  मुख्य पृष्ट



           

      आज बेंक ब्रांच की विफलता के कारण नोटो की आपूर्ति नही हो रही है, जगह जगह लोग लाइन मे खड़े है, आज कोई पत्रकार, नेता या उद्योगपति लाइन मे नही खड़ा है क्यो की उनकी घर बैठे बेंक करमचारी द्वारा अपने अपने स्तर पर उनकी नोटो की समस्या का समाधान बिना लाइन मे लगे हो रहा है, आज लाइन मे सिर्फ़ आम नागरिक खड़ा है और वो अपने को ठगा महशूष कर रहा है, कई बेंक करमचारी सीमा से आधिक नोटो को अपने घर ले जाते हुए पकड़े गये है !   


 समाचार पत्र के छठे पेज का कोना





समाचार पत्र के चोथे पेज का कोना


            आज सैनिक से पूछो जो 20 साल की सेवा मे 15 साल बिना परिवार की चिंता किए देश सेवा करता है, परिवार मे शादी हो या मृत्यु या बच्चो और पत्नी की बीमारी हो कभी उसकी चिंता न कर देश सेवा को प्रमुखता देता है वो भी विपरीत  हालत मे या तक की एक सैनिक की पत्नी शादी सुदा होते हुए भी 20 वर्ष मे से 15 वर्ष ............. की तरह जीवन गुज़ारती है, असली नायक ये है न की दो दिन छुट्टी मे एसी मे बेठ  कर काम करने वाले बेंक कर्मी ! इन नायको को अख़बार के मुख्या पृष्ठ पर कभी जगह नही मिलती, या तक की देश के लिए सहीद होने पर भी पेज के कोने मे कही जगह देते है ! 

   
समाचार पत्र के चोथे पेज का कोना

        

            आज नोटो को बदलने के जितनी परेशानी बढ़ी है उसके लिए सरकार से ज़्यादा ज़िम्मेदार बेंक है, उन्होने इसकी समुचित व्यवस्था न करके अपने लोगो का काम पिछले दरवाजे से करना चुरु रखा और सामान्य नागरिक को घंटो इंतेज़ार करने के बाद नंबर आता था तब तक नोट ख़तम हो जाता था ! आख़िर वो नोट जाते कहा थे वो भी जाँच का विषय है !


               इश् आर्थिक आपातकाल जैसे हालत मे बेंको को सेना की तरह बिना भेद भाव के करना चाहिए था, जो करने मे बेंक पुरी तरह विफल रहे है !



(उपरोक्तलिखित कथन का उद्देस्य किसी भी वर्ग की भावनाओ को ढ़ेश पहुचाना नही बल्कि आम नागरिको को बेंको मे नोटो को बदलने के लिए हो रही परेशानी एवं बेंक कर्मियो की विफलता की तरफ ध्यान दिलाना है ! फिर भी किशी वर्ग को ढ़ेश पहुचती है तो  लेखक क्षमा प्रार्थी है !)


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